वीरवार की शाम आतंकियों के घात,पांच जवान बलिदान हो गए,फिर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं।

पुंछ जिले के बफलियाज इलाके के सावनी इलाके में वीरवार की शाम आतंकियों के घात लगाकर दो सैन्य वाहनों पर किए गए हमले में पांच जवान बलिदान हो गए, जबकि दो जवान घायल भी हुए हैं। दहशतगर्दों ने पहले ग्रेनेड दागे, फिर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। दो जवानों के शव क्षत विक्षत भी कर दिए गए हैं।

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राजोरी-पुंछ में नापाक हरकतों को अंजाम देने वाले आतंकियों ने पाकिस्तान में बैठे आकाओं के निर्देश पर अब रणनीति में बदलाव कर लिया है। अब घरों की जगह दहशतगर्द जंगलों में शरण ले रहे हैं और अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देकर फिर जंगलों में जाकर छिप जाते हैं।

सूत्रों के अनुसार नियंत्रण रेखा के उस पार आईएसआई और पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा आतंकियों को अधिक से अधिक समय तक जंगलों में गुजारने का विशेष प्रशिक्षण देकर इस पार भेजा जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप पुंछ और राजोरी जिले में बीते कुछ समय से जितनी भी आतंकी घटनाएं हो रही हैं, उनका केंद्र जंगली क्षेत्र ही रहा है।


इन आतंकियों को जंगलों में बनी छोटी-छोटी प्राकृतिक गुफाओं या बरसाती नालों में पत्थरों की ओट में किस प्रकार समय बिताना है, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसा करने के पीछे का आतंकियों का मकसद क्षेत्र के लोगों से दूरी बनाए रखना है, जिससे उनकी मौजूदगी का कम से कम लोगों को पता चल पाए। यही कारण है कि अब आतंकियों द्वारा जनसंपर्क सीमित किया जा रहा है।

नए आतंकी पुराने ओजीडब्ल्यू के स्थान पर नए ओजीडब्ल्यू को खड़ा कर रहे हैं, जिनसे वे कम ही मुलाकात करते हैं और बहुत जरूरत पढ़ने पर कुछ पलों के लिए ही उनसे मिलते हैं। इससे आतंकी लंबे समय तक सुरक्षा बलों की नजरों से बचे रहते हैं और किसी भी घटना में वह अधिक नुकसान करने में सफल हो जाते हैं।
इतना ही नहीं आतंकियों द्वारा किसी भी वारदात को अंजाम दिए जाने के बाद भी खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों को आतंकियों की पहचान व उनका पता नहीं चल पता है कि घटना को अंजाम देने के बाद किस तरफ चले गए हैं।


जम्मू-कश्मीर में तीन दशकों से अधिक समय से जारी आतंकवाद के चलते दहशतगर्दों के साथ-साथ जंगली जानवरों की संख्या में भी बढ़ोतरी होने से ग्रामीणों ने जंगलों से लकड़ियां लाना भी बद कर दिया है। जंगल काफी घने हो चुके हैं, जिनमें छिपने के स्थानों की संख्या भी बढ़ गई है।
आतंकवाद के दौर में आतंकी अपने समर्थकों के घरों में रहना अधिक पसंद करते थे और भूमिगत ठिकाने बनाकर रहते थे। इसके लिए मोटी रकम खर्च की जाती थी, लेकिन गांवों में घरों में रहने के कारण आतंकियों का अधिक लोगों से मेलमिलाप होता था, जिसके उनकी मुखबरी की संभावना बढ़ जाती थी। जंगलों में डेरा डालने से आतंकियों को अपने भूमिगत ठिकाने बनाने के लिए खर्च से निजात मिलने के साथ मुखबरी की चिंता भी कम रहती है।

पुंछ में सैन्य वाहनों पर ग्रेनेड हमले के बाद आतंकियों ने की फायरिंग,पांच जवान बलिदान
आपको बता दें कि पुंछ जिले के बफलियाज इलाके के सावनी इलाके में वीरवार की शाम आतंकियों के घात लगाकर दो सैन्य वाहनों पर किए गए हमले में पांच जवान बलिदान हो गए, जबकि दो जवान घायल भी हुए हैं। दहशतगर्दों ने पहले ग्रेनेड दागे, फिर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। दो जवानों के शव क्षत विक्षत भी कर दिए गए हैं।

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